चित्त प्रवाह!?

दुनिया की बनावट में विश्लेषण है लेकिन आत्मा के विज्ञान में एक स्थिति है जो स्वत: है, निरन्तर है, सर्व्यापक है। मनुष्य समाज को छोड़ दें तो जगत में सभी स्वत: व्यवस्था से जुड़े हैं जो ज्ञान है, जो नैसर्गिक स्थिति है। विज्ञान हर समय सर्वव्यापक गहराई में अंतर्निहित है। जो वहां तक ​​पहुंचता है वह स्वत: खोज व्यवस्था से जुड़ जाता है। उसे देखने की जरूरत है, जीवन की गहराई में नहीं उतरा है। करते हुए एक दो बार उस दशा में आ जाते हैं, जिस तरह हम अपने शरीर, आस पास की प्रकृति की दशा को महसूस करते हैं। यह भी महसूस करते हैं कि हमारे शरीर की यह दशा है, इसमें यह चीज इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए। ज्ञान और प्रेम सर्व्यापक स्थिति की ही स्थिति है। आत्म विज्ञान में अनुसंधान की आवश्यकता नहीं होती। आत्मा विज्ञान में होने पर एक दशा की ओर हम बढ़ सकते हैं जो सर्व्यापक है, जो स्वयंभू है, स्वयं खोजता है। वहीं से हम वेद की स्थिति में पहुंच सकते हैं, जहां से शाश्वत शब्द व वर्ण की दशाएं प्रकट होती हैं, जो आगे की प्रकृति में ध्वनि हो जाती हैं। आयुर्वेद वहीं से है। यह सब हम अपने ध्यान की दशा में जा कर लिख रहे हैं। जहां से हम 'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर' की स्थिति की ओर देखते हैं। सर्व्यापकता को महसूस करने के3 द्वार पर फोकस करते हैं। जो से ऋषियों, मुनियों, नबियों, वरस की स्थिति शुरू होती है।ज्योति+ईष की स्थिति शुरू होती है। यह है कि किसी व्यक्ति को एक बीमारी से परेशानी होती है।उसे एक सपने में आभास होता है कि अमुख अमुख जड़ी बूटी का उपयोग ठीक हो जाएगा।वह ऐसा ही है करता है और ठीक होता है। यहाँ से फिर उसकी हालत भी होती है... अजगर करें न चकरी ..?!
#अशोकबिन्दु 

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6 Comments

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Alka jain

01-Mar-2023 07:48 PM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

20-Feb-2023 11:35 AM

👏👌🙏🏻

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